Friday 9 October 2009

इंटरनेट और वेब पत्रकारिता की तकनीकी शब्दावली

हिंदी की पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्दावली में सूचना की नई क्रांति के बाद तेजी से परिवतüन हुए हैं। पत्रकारिता, इंटरनेट, वेब मीडिया आदि के क्षेत्र में प्रतिपल परिवतüन हो रहे हैं। डिजीटल तकनीक से आए सूचना के इस महाजाल में हिंदी के शब्दों को विदेशी आगत-शब्दों से प्रतिपल रू-ब-रू होना पड़ रहा है।
सन् 2000 के बाद पत्रकारिता, साहित्य और मीडिया के विविध क्षेत्र तेजी से अति आधुनिक हुए हैं। मीडिया पर सूचना प्रौद्योगिकी का वचüस्व है । समाचार-संकलन से लेकर प्रिंट तक मोबाइल फोन, इंटरनेट, लैपटाप, मोडम, इत्यादि साधनों का प्रयोग किया जा रहा है । समाचारपत्र का कायाüलय कम्प्यूटर पर आधारित है। संवाददाता, ब्यूरोचीफ, समाचार-संपादक आदि अपने-अपने टमिüनल पर लगे कम्प्यूटर पर समाचार को भाषायी, तकनीकी एवं संस्थान की नीति के के आधार पर अंतिम रूप देते हैं ।
प्रिंट मीडिया के साथ-साथ इलेक्ट्रानिक मीडिया भी कम्प्यूटर से उपकृत है । पत्रकारिता के इन क्षेत्रों में प्रयुक्त हिंदी के तकनीकी-शब्दों की संख्या भी इसी तेजी से बढ़ी है। अँगरे.जी के व्यापक प्रभाव के कारण अनेक तकनीकी शब्दों को ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया गया। यह प्रवृत्ति लगातार जारी है। हालात यह है कि जब हम अपना नेट बंद कर रात्रि सो जाते हैं तब भी सुबह उठने से पहले दरजनों नए शब्द इन क्षेत्रों में आ धमकते हैं। जाहिर है कि इंटरनेट और वेब पत्रकारिता में आ रहे ऐसे अँगरे.जी शब्दों को रोमन से देवनागरी में लिप्यंतरित किया जा रहा है।
सवाल यह उठता है कि क्या हम अँगरे.जी के शब्दों को ऐसे ही प्रतिदिन आने दें? तकनीकी-शब्दावली के निमाüण के लिए इन क्षेत्रों में कायüरत हिंदी-विशेषज्ञों को सामने आना होगा। तकनीकी और पारिभाषिक शब्दावली की प्रक्रिया को केवल सरकारी आयोग के बलबूते छोडऩा ठीक नहीं है । इन क्षेत्रों में कायü कर रहे लोगों की भी जिम्मेदारी बनती है । सुखद बात है कि लगातार कुछ लोग अपनी जिम्मेदारी निभाने आगे आ रहे हैं और इंटरनेट तथा वेब पत्रकारिता में नए-नए शब्द गढ़े जा रहे हैं । मेरा ऐसा मानना है कि आधुनिकता और तकनीक के कारण जो नए शब्द अँगरे.जी में आ रहे हैं, उसके हिंदीकरण के लिए आम जनता भी अपनी भूमिका निरंतर अदा कर रही है । पत्रकारिता और विज्ञापन जैसे क्षेत्रों में तो यह कायü पहले से हो रहा है ।हम सबसे पहले इंटरनेट अथाüत् अंतरजाल की बात करें तो सूचना-तंत्र और पत्रकारिता को आम आदमी तक पहुॅंचाने की कवायद इस तकनीक ने की है। दुनिया के अनेक अखबार अब इंटरनेट पर पढ़े जा सकते हैं। सैकड़ों पत्रिकाओं और जनüल्स के अंक इस अंतरजाल पर उपलब्ध है। इससे और आगे जाकर ब्लॉग-लेखन का काम प्रारंभ हुआ है जिसने समूची दुनिया में हलचल मचा दी है। सचमुच विश्व गॉंव बन चुका है और आम आदमी अब सूचनाओं और ज्ञान-विज्ञान का पाने के लिए किसी सरकारी या गैर सरकारी तंत्र का मोहताज नहीं रहा ।आज दो साल बाद मैं यह देख रहा हूॅं कि जो भी अखबार हैं वे अपना वेब संस्करण आकषüक ढंग से निकालना चाहते हैं और जो नये प्रकाशन अस्तित्व में आ रहे हैं वे अपना वेब संस्करण भी लाना चाहते हैं। अब एक मुश्किल यह आ रही है कि पत्रकार आमतौर पर तकनीक दक्ष नहीं है, जो तकनीकी रूप से दक्ष हैं वे वेब की दुनिया को नहीं समझते। जो वेब की दुनिया और तकनीकी दोनों को समझ सकते हैं वे पत्रकारिता नहीं करते।पहले हम भारत में वेब पत्रकारिता के इतिहास की बात करें तो यह लगभग दस वषü पुरानी है। देश में सबसे पहले चेन्नई स्थित हिंदू अखबार ने अपना पहला इंटरनेट संस्करण जारी किया था। हिंदू का इंटरनेट संस्करण 1995 में आया था। इसके बाद 1998 तक तकरीबन 48 समाचार पत्रों ने अपने इंटरनेट संस्करण लांच किए, लेकिन मौजूदा समय में देखें तो लगभग सभी मुख्य समाचार पत्रों, समाचार पत्रिकाओं और टेलीविजन चैनलों ने नेट संस्करण मौजूद हैं। हालांकि, समाचार पत्र और पत्रिकाएं ऑन लाइन न्यूज डिलीवरी के खेल में पूरी तरह नहीं छा पाए हैं। बल्कि इन्हें न्यूज पोटüल, न्यूज कॉनग्रेटसü और इंटरनेट कंपनियां जैसे कि एमएसएन, याहू और गूगल का साथ लेना पड़ा है।
वेब पत्रकारिता ने समाचार और सूचना संसार में बड़ा परिवतüन किया है। नई तकनीक के आने से वेब पत्रकारिता ने तत्काल की एक संस्कृति को जन्म दिया है। यह एक न्यूज एजेंसी या चौबीस घंटे टीवी चैनल जैसी है। तकनीक में हो रहे परिवर्तन ने वेब पत्रकारिता को जोरदार गति दी है। एक वेब पत्रकार जब चाहे बेवसाइट को अपडेट कर सकता है। यहां एक व्यक्ति भी सारा काम कर सकता है। प्रिंट में अखबार चौबीस घंटे में एक बार प्रकाशित होगा और टीवी में न्यूज का एक रोल चलता रहता है जो अधिकतर रिकार्ड होता है जबकि वेब में आप हर सैकेंड नई और ताजा समाचार और सूचनाएं दे सकते हैं जो दूसरे किसी भी माध्यम से संभव नहीं है।इंटरनेट, समकालीन अग्रगामी मानवता का समष्टिïगत, व्यक्त मानस पटल है। मानव अभिव्यक्ति का यह एक ऐसा विराट, अनंत और जीवंत सागर है जिसमें विचारों, भावनाओं और सूचनाओं की निरंतर चतुर्दिक तरंगें और लहरें उठती रहती हैं। प्रकृति ने मनुष्य को अभिव्यक्ति की जो बेचैनी और क्षमता नैसर्गिक रुप से प्रदान की थी, वह समकालीन लोकतांत्रिक चेतना के दौर में मौलिक मानवाधिकार के रुप में व्यापक स्वीकृति का संबल पाने और वेब तकनीक के जनसुलभ होने के बाद मानवता के इतिहास में पहली बार व्यापक और निर्बाध रुप से प्रस्फुटित हो रही है।दुनिया भर में अलग-अलग भाषाओं के कारण अभिव्यक्ति के इस विराट संसार में शब्दों के कई महासागर, सागर, सरिता, सरोवर और अन्य छोटे बड़े जलाशय हैं, जिनके बीच एक तरफ का आभासी अलगाव भी दिखता है. लेकिन जिस प्रकार धरती पर मौजूद समस्त जलराशि के बीच एक प्राकृतिक अंतर्सबंध है, उसी प्रकार इंटरनेट पर अलग-अलग भाषाओं में मौजूद समस्त शब्दराशि के बीच भी एक तरह का कृत्रिम अंतर्संबंध है। 'की वर्डÓ के रुप में को गोताखोर 'सर्च इंजनÓ की टार्च लेकर इंटरनेट के अनंत सागर में ज्यों ही लगाने उतरता है, उसे हजारों लाखों अपनी तरह के शब्द क्षण भर में दिख जाते हैं और उन सबको जाल में समेटता हुआ वह किनारे पर लेकर आ जाता है।सीधे संवाद का यह नया जरिया इंटरनेट मनुष्य को मुक्ति का अहसास कराता है। वह पहुॅंच को सीधे आपके हाथ में सौंप देता है। आप जिनके बीच जाना चाहते हैं वह आपके सामने आ जाता है। इक्कीसवीं सदी की दुनिया बदल चुकी है, आज के शहरी व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा और मकान के साथ-साथ इंटरनेट भी सम्मिलित हो चुका है। मोबाइल उपकरणों पर इंटरनेट की उपलब्धता और प्रयोक्ताओं की इंटरनेट पर निर्भरता ने इस विचार की सत्यता पर मुहर-सी लगा दी है, ऐसे में, इंटरनेट पर विविध रूपों में वेब पत्रकारिता भी उभर रही है, चिट्ठा यानी ब्लॉग को भी वेब पत्रकारिता का आधुनिक स्वरूप माना जा सकता है। बहरहाल, ब्लॉगिंग अब नए क्षेत्रों, नई दिशाओं में आगे बढ़ रही है।। असल में ब्लॉग तो अपनी अभिव्यक्ति, अपनी रचनाओं को विश्वव्यापी इंटनेटर उपभोक्ताओं के साथ बाँटने का मंच है, और ऐसे मंच का प्रयोग सिर्फ लेखों, राजनैतिक टिप्पणियों और साहित्यिक रचनाओं के लिए किया जाए, यह किसी किताब में नहीं लिखा है। ब्लॉग पर फोटो या वीडियो डाल दीजिए, यह फोटो-ब्लॉग तथा वीडियो-ब्लॉग कहलाएगा। संगीत डाल दीजिए तो यह म्यूजिक-ब्लॉग हो जाएगा। रेडियो कार्यक्रम की तरह अपनी टिप्पणियों को रिकार्ड करके आडियो फाइलें डाल दीजिए तो यह प्रो-कास्ट कहलाएगा।इंटरनेट पर हिंदी का वर्तमानआज हिंदी भाषा इंटरनेट पर मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। जिन गैर-रोमन भाषाओं में इंटरनेट पर सर्वाधिक सामग्री उपलब्ध है - उनमें हिंदी का स्थान काफी ऊपर है। इंटरनेट पर हिंदी का विकास तेजी से हो रहा है, लेकिन अभी हिन्दी को बहुत लम्बा सफर तय करना बाकी है। इंटरनेट पर ंिहंदी में कई प्रकार के जालस्थल उन्नत कर लिए गए हैं और नित नये हिंदी जालस्थल अस्तित्व में आ रहे हैं। इनमें से बहुत से ऐसे जालस्थल हैं जो लोगों को पत्रकारिता करने और मत-प्रकटन में सहायता करते हैं।ब्लॉग से भी ज्यादा रचनात्मक, आकर्षक और लोकप्रिय माध्यम आपकी सेवा में आ चुका है - जिसके जरिए आप अपने विचारों को इंटरनेट पर प्रकाशित-प्रसारित कर सकते हैं। जी हाँ, आपने सही अंदाजा लगाया है - यह नया, ताज़ातरीन तकनॉलाजी पॉडकांिस्ंटग, जो कि इंटरनेट प्रयोक्ताओं में तेजी से लोकप्रिय तो हो ही रहा है, इसकी उपयोगिता भी बढ़ती जा रही है। आने वाले समय में, लगता है, हर कोई या तो खुद पॉडकास्ंिटग करता मिलेगा या किसी दूसरे की पॉडकास्ंिटग सुनता मिलेगा। लगता है, इंटरनेट का सन् 2005, पॉडकास्ंिटग को समर्पित होने वाला है।यूनीकोड ने बदला वेब-मीडिया का परिदृश्यवेब मीडिया की लोकप्रियता-ग्राफ में गुणात्मक वृद्धि नहीं होने के पीछे अन्य कारणों के साथ फॉन्ट की समस्या भी रही है। शुरुआती दौर में इन अखबारों को पढऩे के लिए यद्यपि हिंदी के पाठकों को अलग-अलग फॉन्ट की आवश्यकता होती थी जिसे संबंधित अखबार के साइट से उस फॉन्ट विशेष को चंद मिनटों में ही मुफ्त डाउनलोड और इंस्टाल करने की भी सुविधा दी जाती (गई) है। हिंदी के फॉन्ट की जटिल समस्या से हिंदी पाठकों को मुक्त कराने के लिए शुरुआती समाधान के रूप में डायनामिक फॉन्ट का भी प्रयोग किया जाता रहा है। डायनामक फॉन्ट ऐसा फॉन्ट है जिसे उपयोगकर्ता द्वारा डाउनलोड करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि संबंधित जाल-स्थल पर उपयोगकर्ता के पहुँचने से फॉन्ट स्वमेव उसके कंप्यूटर में डाउनलोड हो जाता है। यह दीगर बात है कि उपयोगकर्ता उस फॉन्ट में टाइप नहीं कर सकता। अब यूनीकोड फॉन्ट के विकास से वेब मीडिया में फॉन्ट डाउनलोड करने की समस्या लगभग समाप्त हो चुकी है। बड़े वेब पोर्टलों के साथ-साथ सभी वेबसाइट अपनी-अपनी सामग्री यूनीकोडित हिंदी फॉन्ट में परोसने लगे हैं किन्तु अभी भी अनेक ऐसे साइट हैं जो समय के साथ कदम मिला कर चलने को तैयार नहीं दिखाई देतीं। दिन-प्रतिदिन गतिशील हो रही वेबमीडिया की पाठकीयता (वरिष्ठï पत्रकार संजय द्विवेदी के शब्दों में दर्शनीयता ही सही) को बनाये रखने के लिए पाठक को फॉन्ट डाउनलोड करने के लिए अब विवश नहीं किया जा सकता। क्योंकि अब वह विकल्पहीनता का शिकार नहीं रहा। पीडीएफ में सामग्री उपलब्ध कराना फॉन्ट की समस्या से निजात पाने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प या साधन नहीं है। भाषायी ऑनलाइन पत्रकारिता वास्तविक हल तकनीकी विकास से संभव हुआ यूनीकोडित फॉन्ट ही है जो अब सर्वत्र उपलब्ध है।हिंदी में तकनीक उपलब्धवेब-मीडिया खासकर हिंदी में पत्रकारिता के विकास में मुख्य बाधा हिंदी में तकनीक का अभाव रहा है पर वह भी लगभग अब हल की ओर है। विंडोज तथा लिनक्स जैसे ऑपरेटिंग सिस्टम का इंटरफेस भी हिंदी में बन चुका है। केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिक मंत्रालय, भारत सरकार की इकाई सीडैक (सेंटर फॉर डवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग) द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका निभायी जाती रही है। भाषा तकनीक में विकसित उपकरणों को जनसामान्य तक पहुँचाने हेतु बाकायदा 222.द्बद्यस्रष्.द्दश1.द्बठ्ठ तथा 222.द्बद्यस्रष्.द्बठ्ठ वेबसाइटों के द्वारा व्यवस्था की गई है जिसके द्वारा ट्रू टाइप ंिहदी फॉन्ट (ड्रायवर सहित), ट्रू टाइप फॉन्ट के लिए बहुफॉन्ट की-बोर्ड इंजन, यूनीकोड समर्थित ओपन टाइप फॉन्ट, यूनीकोड समर्थित की-बोर्ड फॉन्ट, कोड परिवर्तक, वर्तनी संशोधक, भारतीय ओपन ऑफिस का हिंदी भाषा संस्करण, मल्टी प्रोटोकॉल हिंदी मैसेन्जर, कोलम्बा - हिंदी में ई-मेल क्लायंट, हिंदी ओसीआर, अॅँगरे.जी-हिंदी शब्दकोश, फायर-फॉक्स ब्राउजर, ट्रांसलिटरेशन, हिंदी एवं अॅँगरे.जी के लिए आसान टंकण प्रशिक्षक, एकीकृत शब्द-संसाधक, वर्तनी संसाधक और हिंदी पाठ कॉर्पोरा जैसे महत्वपूर्ण उपकरण एवं सेवा मुफ्त उपलब्ध कराई जा रही है।अब इंटरनेट पर भी यही हो रहा है। हो रहा है तो अच्छी बात भी है। भाषा की बगिया से अपनी जीविका के फूल चुनने वालों के लिए तो इस बहार का कब से इंतजार था। प्रेस-कांफ्रेंस में झोला टांगकर पीछे खड़े रहने वाले और कॉफी हाउस में कॉफी पी-पी कर अँगरेज़ी के पत्रकारों को कोसने वाले अपने भाषा के योद्धा पत्रकारों को कोई पलक पाँवड़े बिछाकर बुलाए तो इससे अच्छा और क्या होगा ? जिस देवनागरी को विद्यालयों में भी ढंग से नहीं सिखाया-पढ़ाया जा रहा, जिनकी यह मूल जिम्मेदारी है, उस देवनागरी में चि_ïाकारी (ब्लॉग्स) के हर रोज़ परवान चढ़ते जुनून को देखकर मन-मयूर झूम उठता है। रोमन लिपि के साम्राज्य से भारतीय भाषाओं की इस मुक्ति के जश्न को सार्थक करने के लिए आज भाषा-प्रेमी पत्रकारों की भरपूर आवश्यकता है। ये नदी कहीं फिर बीच रास्ते में ही सूख न जाए। कॉन्वेंट से लेकर कॉर्पोरेट जगत तक छाए अँगरेज़ी के वर्चस्व के मानसिक दबाव को कम करने का महत्वपूर्ण काम यह भाषा क्रांति कर सकती है। आज भाषा को लेकर अच्छा काम करने वालों की बड़ी संख्या में आवश्यकता है, पर अच्छे लोग नहीं मिल रहे हैं। अखबार, इंटरनेट और टीवी, सभी जगह हिंदी में अच्छी कॉपी लिखने वालों की कमी बनी रहती है। अब तो कम से कम केवल अँगरेज़ी के ही रोज़गारमूलक होने का भ्रम टूट जाना चाहिए...हिंदी में अभी ब्लॉगिंग अपने शैशव काल में है। अँगरे.जी में जहां ब्लॉगिंग 1997 में शुरू हो गई थी वहीं हिंदी में पहला ब्लॉग दो मार्च 2003 को लिखा गया। समय के लिहाज से अँगरे.जी और हिंदी के बीच महज छह साल की दूरी है, लेकिन ब्लॉगों की संख्या से दोनों के बीच कई प्रकाश-वर्ष का अंतर है। अँगरे.जी में और कुछ नहीं तो साढ़े तीन करोड़ ब्लॉग मौजूद हैं जबकि हिंदी में करीब एक हजार। हालॉंकि अप्रत्याशित रूप से ब्लॉगिंग की दुनिया में विश्व में एशिया का ही दबदबा है। टेक्नोरैटी के अनुसार विश्व कुल ब्लॉगों में से 37 प्रतिशत जापानी भाषा में हैं और 36 प्रतिशत अँगरे.जी में है। कोई आठ प्रतिशत ब्लॉगों के साथ चीनी भाषा तीसरे नंबर पर है। ब्लॉगों के मामले में हिंदी अपने ही देश की तमिल से भी पीछे है जिसमें दो हजार से अधिक ब्लॉग मौजूद हैं। लेकिन हिंदी ब्लॉग जगत निराश नहीं हैं। कुवैत में रहने वाले वरिष्ठï हिंदी ब्लॉगर जीतेंद्र चौधरी कहते हैं कि सन 2003 में शुरू हुए इस कारवां में बढ़ते हमसफरों की संख्या से सतुंष्टिï के लायक है।